पीएम मोदी के बयान पर पलटवार करते हुए नीतीश कुमार ने विधानसभा चुनाव में
इसे चुनावी हथियार बनाया था और इस डीएनए वाले बयान को अपना अचूक तीर बनाकर
ऐसा निशाना साधा कि राजद के साथ गठबंधन कर बिहार की सत्ता में वापसी कर ली. नीतीश कुमार ने नीतीश कुमार ने डीएनए की बात को बिहार के स्वाभिमान से
जोड़ दिया था. जहां-जहां वह जाते थे, पीएम मोदी के डीएनए वाले बयान का
जिक्र करते थे और एक समय ऐसा भी आया कि समूचे बिहारियों में वह यह संदेश लगभग देने में कामयाब हो गए थे कि सच में पीएम मोदी ने बिहारियों की डीएनए
की बात की है.
यही वजह है कि मौजूदा वक्त में उपेंद्र कुशवाहा भी नीतीश कुमार को उसी तीर से उन्हें मात देना चाहते हैं. यही वजह है कि लोकसभा चुनाव से ठीक पहले सीटों के बंटवारे में अपना वर्चस्व कायम रखने की उम्मीद से कुशवाहा नीतीश कुमार पर मानसिक दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं. अगर सीटों की सौदेबाजी सही नहीं होती है या फिर एनडीए में समीकरम सही नहीं होते हैं तो ऐसा लग रहा है कि नीतीश के नीच वाले बयान को उपेंद्र कुशवाहा आम जनतक ले जा सकते हैं और नीतीश कुमार को टारगेट करने के लिए ऐसा ही इसका इस्तेमाल करेंगे, जैसा कभी नीतीश ने पीएम मोदी के खिलाफ किया था. उपेंद्र कुशवाहा ऐसा इसलिए भी कर रहे हैं क्योंकि उनके लिए कई विकल्प खुले हैं. अगर एनडीए में मनमुताबिक उन्हें सीटें नहीं मिलती हैं तो राजद महागठबंधन का दरवाजा भी उनके लिए खुला है और अगर एनडीए में ही रहते हैं तो उम्मीद है कि उन्हें पिछली बार से अधिक सीटें दी जाएंगी. मगर फिलहाल ऐसा होता नहीं दिख रहा है.
सूत्रों की मानें तो, फिलहाल अमित शाह और नीतीश कुमार के बीच सहमति ये हुई है कि जेडीयू और बीजेपी 17-17 सीटों पर चुनाव लड़ेंगी. वहीं रामविलास पासवान की पार्टी लोजपा को 5 सीटें दी जाएंगी और उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएसपी को एक सीट मिलेगी. गौर करने वाली बात है कि पिछले लोकसभा चुनाव में लोजपा को 7 सीटें मिलीं थीं. वहीं, उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी को 3 सीटें मिली थी और इन तीनों सीटों पर कुशवाहा की पार्टी ने जीत दर्ज की थी. यही वजह है कि उपेंद्र कुशवाहा एनडीए में नाराज चल रहे हैं. हालांकि, वह कई बार कह चुके हैं कि वह एनडीए में ही बने रहेंगे.
सियासी गलियारों में यह भी खबर है कि कुशवाहा के पास दोनों विकल्प खुले हैं. एक ओर तो वह एनडीए में हैं हीं. वहीं दूसरी ओर तेजस्वी यादव भी खुले तौर पर उन्हें आमंत्रित कर चुके हैं. यही वजह है कि कुशवाहा मौके पर चौका मारने की फिराक में है. इसलिए वह समय की नजाकत को समझते हुए अपने बयान दे रहे हैं. उपेंद्र कुशवाहा कभी नीतीश कुमार की तारीफ करते हैं तो कभी उनके खिलाफ में हल्ला बोलते हैं. यही वजह है कि राजनीतिक पंडित यह कहते हैं कि उपेंद्र कुशवाहा क्लाइमेक्स का इंतजार कर रहे हैं. तभी जाकर वह अपने सियासी पत्ते खोलेंगे. उपेंद्र कुशवाहा के इस तेवर के पीछ एक और वजह यह बताई जा रही है कि कुशवाहा की पार्टी का जनाधार 2014 लोकसभा चुनाव से पहले कम था. मगर इन चार-पांच सालों में कुशवाहा की पार्टी रालोसपा ने अपने आपको काफी मजबूत किया है. यही वजह है कि कुशवाहा पहले से ज्यादा सीटों की मांग कर रहे हैं.
यही वजह है कि मौजूदा वक्त में उपेंद्र कुशवाहा भी नीतीश कुमार को उसी तीर से उन्हें मात देना चाहते हैं. यही वजह है कि लोकसभा चुनाव से ठीक पहले सीटों के बंटवारे में अपना वर्चस्व कायम रखने की उम्मीद से कुशवाहा नीतीश कुमार पर मानसिक दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं. अगर सीटों की सौदेबाजी सही नहीं होती है या फिर एनडीए में समीकरम सही नहीं होते हैं तो ऐसा लग रहा है कि नीतीश के नीच वाले बयान को उपेंद्र कुशवाहा आम जनतक ले जा सकते हैं और नीतीश कुमार को टारगेट करने के लिए ऐसा ही इसका इस्तेमाल करेंगे, जैसा कभी नीतीश ने पीएम मोदी के खिलाफ किया था. उपेंद्र कुशवाहा ऐसा इसलिए भी कर रहे हैं क्योंकि उनके लिए कई विकल्प खुले हैं. अगर एनडीए में मनमुताबिक उन्हें सीटें नहीं मिलती हैं तो राजद महागठबंधन का दरवाजा भी उनके लिए खुला है और अगर एनडीए में ही रहते हैं तो उम्मीद है कि उन्हें पिछली बार से अधिक सीटें दी जाएंगी. मगर फिलहाल ऐसा होता नहीं दिख रहा है.
सूत्रों की मानें तो, फिलहाल अमित शाह और नीतीश कुमार के बीच सहमति ये हुई है कि जेडीयू और बीजेपी 17-17 सीटों पर चुनाव लड़ेंगी. वहीं रामविलास पासवान की पार्टी लोजपा को 5 सीटें दी जाएंगी और उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएसपी को एक सीट मिलेगी. गौर करने वाली बात है कि पिछले लोकसभा चुनाव में लोजपा को 7 सीटें मिलीं थीं. वहीं, उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी को 3 सीटें मिली थी और इन तीनों सीटों पर कुशवाहा की पार्टी ने जीत दर्ज की थी. यही वजह है कि उपेंद्र कुशवाहा एनडीए में नाराज चल रहे हैं. हालांकि, वह कई बार कह चुके हैं कि वह एनडीए में ही बने रहेंगे.
सियासी गलियारों में यह भी खबर है कि कुशवाहा के पास दोनों विकल्प खुले हैं. एक ओर तो वह एनडीए में हैं हीं. वहीं दूसरी ओर तेजस्वी यादव भी खुले तौर पर उन्हें आमंत्रित कर चुके हैं. यही वजह है कि कुशवाहा मौके पर चौका मारने की फिराक में है. इसलिए वह समय की नजाकत को समझते हुए अपने बयान दे रहे हैं. उपेंद्र कुशवाहा कभी नीतीश कुमार की तारीफ करते हैं तो कभी उनके खिलाफ में हल्ला बोलते हैं. यही वजह है कि राजनीतिक पंडित यह कहते हैं कि उपेंद्र कुशवाहा क्लाइमेक्स का इंतजार कर रहे हैं. तभी जाकर वह अपने सियासी पत्ते खोलेंगे. उपेंद्र कुशवाहा के इस तेवर के पीछ एक और वजह यह बताई जा रही है कि कुशवाहा की पार्टी का जनाधार 2014 लोकसभा चुनाव से पहले कम था. मगर इन चार-पांच सालों में कुशवाहा की पार्टी रालोसपा ने अपने आपको काफी मजबूत किया है. यही वजह है कि कुशवाहा पहले से ज्यादा सीटों की मांग कर रहे हैं.
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दरअसल, पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा को बिहार की 40 में से 22 सीटें मिलीं
थीं, जबकि सहयोगी लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) और राष्ट्रीय लोक समता
पार्टी (रालोसपा) को क्रमश: छह और तीन सीटें मिलीं थीं. तब जेडीयू को केवल दो सीटें ही मिलीं थीं. वहीं, 2015 के विधानसभा चुनाव में बिहार की 243
सीटों में से जेडीयू को 71 सीटें मिलीं थीं. तब भाजपा को 53 और लोजपा एवं रालोसपा को क्रमश: दो-दो सीटें मिलीं थीं. उस चुनाव में जेडीयू, राष्ट्रीय
जनता दल (राजद) तथा कांग्रेस का महागठबंधन था.