Tuesday, June 11, 2019

जब पाकिस्तान सरकार का ख़ज़ाना ख़ाली तो सेना को भी कोई क्या देगा: नज़रिया

पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी कहती रही है कि 2008 से शुरू होने वाले उसकी पांच साल की सरकार के दौर में पाकिस्तान को देश की बदतरीन दहशतगर्दी ने जकड़े रखा था जिसकी वजह से वो जनता के फ़ायदे के लिए कुछ ज़्यादा न कर सकी.
इसके बाद नवाज़ शरीफ़ की हुकूमत ने पांच साल तहरीक-ए-इंसाफ़ के धरनों और पनामा पेपर्स का रोना रोया और अर्थव्यवस्था की ओर कोई ध्यान नहीं दिया.
फिर मुस्लिम लीग (नवाज़ गुट) का कहना था कि चूंकि बिजली की कमी पूरा करने के लिए भारी भरकम प्लांट आयात हुए तो डॉलरों की बड़ी कमी की शिकार पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था बैठ गई.
अब इमरान ख़ान की सरकार को न तो पहले जैसी दहशतगर्दी का संगीन सामना है न ही बिजली की कमी का, तो विश्लेषकों का मानना है कि अर्थव्यवस्था को ठीक करने का उनके पास बेहतरीन मौक़ा है. उनके पास करने का कुछ और नहीं है.
जब हाथ में पैसा न हो तो कोई घर नहीं चल सकता, देश तो दूर की बात है. देश की अर्थव्यवस्था इतनी बीमार हो चुकी है कि अगर अभी दवा नहीं की गई तो फिर दवाओं का वक़्त भी गुज़र चुका होगा.
पाकिस्तान की बीते साल की समीक्षा रिपोर्ट में स्वीकार किया गया है कि "बीते दस सालों में डॉलर कमाने की क्षमता शून्य रही. आमदनी से ज़्यादा ख़र्चे किए गए और अब उन क़र्ज़ों पर अरबों डॉलर का सूद देना पड़ रहा है."
ऐेसे ही प्रधानमंत्री के वित्तीय सलाहकार डॉक्टर अब्दुल हफ़ीज़ शेख़ ने डिफॉल्टर होने के संगीन ख़तरे का भी इज़हार कर दिया है.
ऐसे ही सेना ने भी इस बार सुरक्षा बजट में बढ़ोतरी न करने की ख़बर दी. लेकिन कई विश्लेषकों का कहना था कि जब ख़ज़ाना ख़ाली हो तो किसी को कोई क्या दे सकता है. छोटी सी बात ये है कि अर्थव्यवस्था इस समय बेहद ख़राब दौर से गुज़र रही है. सऊदी अरब और चीन समेत हर दोस्त देश जितनी मदद (अब तक 9.2 अरब डॉलर) कर सकते थे कर चुके हैं.
इस पर फ़ाइनेंशियल एक्शन टॉस्क फ़ोर्स (एफ़आईटीएफ़) ने भी मुश्किलें ही बढ़ाई हैं जो दहशतगर्दी और मनी लॉन्डरिंग के लिए पाकिस्तान पर लगातार दबाव बनाए हुए हैं. लेकिन मसला सबसे ज़्यादा ख़राब शायद इमरान ख़ान की सियासी टीम ने ख़ुद किया.
2018 के आम चुनावों में कामयाबी के बाद उनके सियासी बेहतरी के सिपहसालार नंबर एक असद उमर ने आईएमएफ़ से छह अरब डॉलर का बेलआउट पैकेज लेने में आठ नौ महीने की देर कर दी जिस से हालात और ज़्यादा ख़राब हुए.
आईएमएफ़ से छह अरब डॉलर बेहद सख़्त शर्तों के साथ मिलेंगे लेकिन अर्थव्यवस्था संभलते-संभलते ही संभलेगी. अब ख़ुद तहरीक-ए-इंसाफ़ के अहम नेता जहांगीर तरीन ने सार्वजनिक तौर पर स्वीकार किया है कि आईएमएफ़ से समझौता बीते साल अक्तूबर तक कर लिया जाना चाहिए था.
ख़ैर अब पुराने तजुर्बेकार खिलाड़ियों जैसे कि डॉक्टर अब्दुल हफ़ीज़ शेख़ को मैदान में लाया गया है ताकि वो कोई चमत्कार कर सकें. लेकिन चुनौतियां बेहद सख़्त हैं.
सबसे ज़्यादा ज़ोर टैक्सों के ज़रिए सरकार की कमाई बढ़ाने की कोशिश पर है. प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ख़ुद कई बार देश से टैक्स अदा करने और नई टैक्स एमनेस्टी स्कीम से 30 जून तक फ़ायदा उठाने की अपील कर रहे हैं. लेकिन टैक्स देने वाले तंग हैं कि कितना टैक्स दें.
वेतन लेने वाला तबक़ा पिसता जा रहा है जबकि जिसने टैक्स नहीं देना हो 'नहीं देना की रट' पर क़ायम है और उस मक़सद के लिए नए-नए रास्ते भी तलाश कर रहा है.
प्रधानमंत्री इमरान ख़ान इसलिए उन्हें धमकियां दे रहे हैं कि उन्होंने उन लोगों के बारे में कई देशों से मालूमात हासिल करने के लिए समझौते किए हैं और ख़ुफ़िया एजेंसियों ने भी उनके बारे में जानकारियां हासिल की हैं. उनका ज़ोर है कि 30 जून के बाद वो बच नहीं सकते हैं. लेकिन इसकी गारंटी क्या है?
ख़ुद प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के टैक्स के बारे में विपक्ष का विरोध है. वो उन्हें टैक्स चोर प्रधानमंत्री क़रार देते हैं क्योंकि इमरान ख़ान के ज़रिए किए गए टैक्स रिटर्न के मुताबिक़ उन्होंने 2017 में महज़ एक लाख तीन हज़ार पाकिस्तानी रुपये का टैक्स अदा किया.
मुस्लिम लीग (नवाज़) के नेता और पूर्व प्रधानमंत्री शाहिद ख़ाक़ान अब्बासी कहते हैं कि जिसने टैक्स से बचना हो वो पीटीआई में शामिल हो जाए. उनका इशारा शायद प्रधानमंत्री के अलावा उनकी बहन अलीमा की ओर है जिन्होंने बीते दिनों जुर्माना अदा करके अपनी जान बचाई.
वो वफ़ादार पाकिस्तानी जो भारी टैक्स पहले से देते हैं उन पर जानकारियां है कि नए बजट में भारी बोझ डाला गया है.
ये तो सीधे टैक्स की बात है लेकिन बजट में बिजली, गैस और मालूम नहीं क्या कुछ और भी महंगा होने जा रहा है क्योंकि उन पर भी टैक्स में बढ़ोतरी की गई है.

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